Thursday, June 14, 2012

मैं इतना सोच सकता हूँ - 4

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मेरा संसार उज्जवल है, मुझे घरवार का बल है,
सकल संसार मेरा घर, मेरा विश्वास निर्मल है,
मेरा दर्शन, मेरा बचपन, मेरा जीवन, मेरा उपवन,   
मैं इतना सोच सकता हूँ, यही सब साथ प्रतिपल है। 

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मुझे संघर्ष करने का, जहाँ से भाव आता है,
उसी के मूल से,  शक्ति भरा प्रभाव आता है
मेरा हर क्रत्य अच्छा हो, मेरा आशय भी सच्चा हो
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं अलगाव आता है।

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मुझे नेतृत्व का कौशल,  मेरे अपने सिखाते हैं
मगर हर क्रत्य को मेरे, वो पलड़ों में बिठाते हैं
मेरा सुनना, मेरा सहना, मेरा कहना, मेरा करना,
मैं इतना सोच सकता हूँ, मेरा जीवन सजाते हैं.

5 May 2012, Shillong

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावप्रणव अभिव्यक्ति।

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  2. मेरा संसार उज्जवल है, मुझे घरवार का बल है,
    सकल संसार मेरा घर, मेरा विश्वास निर्मल है,

    बहुत सुन्दर भाव

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